An Elegy to Myself
by Dr. Sushil Fotedar
देखता हूँ
मेरी मौत
मुझमें
ही बसी है
तड़पता
हूँ
पर कुछ कर
नहीं सकता
अपने को
फूंकने का
सामान
सदियों से
मैंने खुद
खरीद रखा है
नाज़ था
मुझे
अपनी
हस्ती की
ऊंचाईयों पर
पर पर मेरे
अब जल
चुके
इकारस की
तरह
गिर के
बिखरने को
मजबूर हूँ
गैर तो खैर
गैर ही रहेंगे
अपने
अंगों को चाव
से काटना
मैनें
खुद से
सीखा है
बस
अपने घर से
दूर
झुलसती
बेगानी धूप
में
अब देखता
ही रहता हूँ
मेरी मौत
मुझमें
ही बसी है
तड़पता
हूँ
पर कुछ कर
नहीं सकता
میرا
نوحہ
An Elegy to Myself
دیکھتا
ہوں
میری موت
مجھمیں
ہی بسی ہے
تدپتا
ہوں
پر کچھ کر
نہیں سکتا
اپنے کو
پھونکنے کا
سامان
صدیوں سے
مہینے خود
خرید رکھا ہے
ناز تھا
مجھے
اپنی
ہستی کی اونچاییوں
پر
پر پر
میرے
اب جل چکے
اکارس کی
طرح
گر کے
بکھرنے کو
مجبور ہوں
گیر تو
خیر گیر ہی
رہینگے
اپنے جسم
کو چاؤ سے
کاٹنا
مینیں
خود سے
سیکھا ہے
بس
اپنے گھر
سے دور
جھلستی
بیگانی دھوپ
مے
اب
دیکھتا ہی
رہتا ہوں
میری موت
مجھمیں
مے بسی ہے
تدپتا
ہوں
پر کچھ کر
نہیں سکتا
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